Monday, October 27, 2014

, , ,

ब्रतशील जीवन और अवतार

अवतारों की पुण्य प्रक्रिया भी निर्वाध रीति से बिना किसी अर्चन के संपन्न नहीं हो जाती, उसमे पग - पग पर अवरोध और आक्रमण सामने आते हैं । ‍‍‍ यह सारा उत्पात उन आसुरी तत्वों का है जो अवांछनीयता की सड़ी कीचड़ में ही डांस, मच्छरों की तरह अपनी जिंदगी देखते हैं । ‍‍‍कुछ ईर्ष्यालु हैं, जिन्हें अपने अतिरिक्त किसी अन्य का यश वर्चस्व सहन ही नहीं होता । ‍‍‍ इसके अतिरिक्त सड़े टमाटर का भी एक वर्ग है, जो पेट में रहने वाले कीड़ों की, चारपाई पर साथ सोने वाले खटमलों की , आस्तीन में पलने वाले सांपो की तरह जहाँ आश्रय पाते हैं, वहीं खोखला भी करते हैं । बिच्छू अपनी माँ के पेट का मांस खाकर ही बढ़ते और पलते हैं, माता का प्राणहरण करने के उपरांत ही
जन्मधारण करते हैं । ‍‍‍कृतघ्नो और विश्वासघातिओं का वर्ग इस युग में जिस तेजी से पनपा है, उतना संभवतः इतिहास में भी इससे पहले कभी भी नहीं देखा गया । ‍‍‍

उथली और मजबूत किनारों से रहित नदियाँ तनिक से वर्षा होने पर सब ओर बिखर पड़ती हैं और बाढ़ का रूप धारण कर पास पड़ोस के खेतों - गॉवौ को नष्ट भ्रष्ट कर देती हैं । इसके विपरीत वे नदियाँ भी हैं जिनमे प्रचंड वेगयुक्त जलधारा बहती हैं किन्तु उफनने की दुर्घटना उत्पन्न नहीं होती । कारण की वे गहरी होती हैं और उनके किनारे मजबुत और सुदृढ़ होते हैं । तनिक - से - आकर्षण और भय का अवसर आते ही मनुष्य अपने चरित्र और ईमान को खो बैठता है । थोड़ी - सी - प्रतिकूलता, तनिक सी विरोधी परिश्थितियां उसे सहन नहीं होती और आवेशग्रस्त स्थिति उत्पन्न कर देती हैं । इसका कारण ब्यक्ति की आंतरिक उथलापन है । ब्रतशील जीवन की कमी है । ऐसे लोग तभी तक अच्छे लग सकते हैं जब तक की परीक्षा का अवसर नहीं आता । जैसे ही परीक्षाओं की घड़ी आयी, वैसे ही वे मर्यादाओं को तोड़-फोरकर उथले नालों की तरह विखरते हैं और अपने पड़ोस, समाज व पूरी मनुष्यता के लिए बाढ़ का संकट उत्पन्न करते हैं । मजबुत किनारों का तात्पर्य है - ब्रतशील जीवन । ब्रत आदर्शो के प्रति विश्वास है , निष्ठा है । ब्रत द्वारा मनुष्य लक्ष्य तक पहुँचने हेतु आत्मशक्ति संजोने - अर्जित करने का पर्यत्न करता है । विश्वास जितना शशक्त होता है, निष्ठा जितनी अविचल होती है, संकल्प जितना सुदृढ़ होता है, ब्यक्ति उतनी ही सुगमता से तथा सफलता से जीवन की पूर्णता प्राप्त करता है । शक्ति शक्ति है , इसका समुचित उपयोग तभी संभव है, जबकि यह एकत्रित हो और समुचित दिशा की ओर केंद्रित हो ।
ब्रत से यही असाधारण कार्य संपन्न होता है । इसमें मानवीय जीवन की खोटी - बिखरती शक्तियां एकत्रित एकाग्र होकर जीवन लक्ष्य की दिशा में प्रवाहित होने लगती हैं । हर दिन ब्रत है, दिन का हर पल ब्रत है । सुख - समृद्धि , संतान - स्वास्थ्य आकांक्षा से किया प्रयत्न भी ब्रत है ; तो सिद्ध - बुद्ध - मुक्त अवस्था प्राप्त करने हेतु साधुता को साढ़े रहना भी ब्रत है । खाना भी ब्रत है , नहीं खाना भी ब्रत है । जीवन संग्राम में जूझना भी ब्रत है, मौन - ध्यानी बनकर एकासन पर बैठे रहना भी ब्रत है । जीवन का हर कर्म, जीवन का हर प्रयत्न ब्रत हो सकता है । यदि उसमे ईश्वर से एकात्मता की आकांक्षा और आत्मा की जागरूकता निहित हों । आत्म बल को जगाने - साधने का प्रयत्न ही ब्रत है । ब्रत में आत्मा परमात्मा की ओर उन्मुख होती है । यानी जीवन की परमात्मोन्मुखता ही ब्रत है । ब्रत के हजारों हजार नाम हैं । सातों वारों के ब्रत हैं । पंद्रह तिथिओं के ब्रत हैं । बारह मासों के ब्रत हैं । ब्रतशील जीवन का सार मर्म है - जीवन लक्ष्य की पूर्ति के लिए अभीष्ट साधन एवं साहस का सुसंचय ।





‍‍‍
Share: