Tuesday, January 13, 2015

जीवन का लक्ष्य‍‍‍।

महर्षि याज्ञवलक्य अपनी समस्त संपत्ति को दोनों पत्नियों में बराबर बाँट कर गृह त्याग के लिए उद्यत हुए । मैत्रेयी को संतोष नहीं हुआ और वह आखिर पूछ ही बैठी " भगवन ! क्या मैं इस सब को लेकर जीवन मुक्ति का लाभ प्राप्त कर सकुंगी ? " क्या मैं मर जाउंगी ? आत्मसंतोष प्राप्त कर सकुंगी ? महर्षि ने अपने चिंतन का क्रम तोड़ते हुए कहा - " नहीं । ऐसा नहीं हो सकेगा । साधन सुविधा संपन्न सुखी जीवन जैसा तुम्हारा अब तक रहा उसी तरह आगे भी चलता रहेगा, अन्य सांसारिक लोगों की तरह ही तुम भी अपना जीवन सुख सुविधा के साथ बिता सकोगी । " मैत्रेयी का असंतोष दूर ना हुआ, और वो बोली " येणाह नामरताँ स्याम किमहं तेन कुर्याम् । " जिससे मुँझे अमृतत्व की प्राप्ति ना हो, उसे लेकर मैं क्या करुँगी? देव ! मुँझे यह सुख - सुविधा संपन्न सांसारिक जीवन नहीं चाहिए ।