आज सुबह ११ बजे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की "मन की बात" कार्यक्रम
सुना । एक बात जो मन को छू गयी, वो थी मोदी जी द्वारा कहा गया एक बात की
"प्रतिस्प्रधा अपने आप से करो ना की किसी और से"। मैं आज दिन भर यही सोचता
रहा और इसी पर चिंतन करा को पाया की यह बात सौ फीसदी सच है दुसरो से
प्रतिस्प्रधा करने पर तीन बात हो सकती है
१. अवसाद २. अहंकार और ३. अवकाश
(कुछ ना करना) और यह तीनों ही स्थिति सही नहीं है। अवसाद अर्थात चिंता में
हम अपने भाग्य को दोष देकर और जो है उसी में संतोष करने लगते है, जिससे आगे
बढ़ना असंभव जाता है अहंकार में आने से हम अपने आप को सबसे अच्छा मान बैठते
हैं तो और सब हमें तिनके के सामान लगते हैं और
हम जहाँ थे वहीं रह जाते
हैं और तीसरी स्थिति जिसमें हमें लगता है की दूसरा जिससे हम अपनी तुलना
करते हैं वो हमारे जैसा ही है तो हम निश्चिन्त हो जाते हैं और आगे बढ़ने के
लिए कुछ करते ही नहीं । लेकिन जब हम अपने आप से तुलना करते हैं और कल आज से
भी अच्छा कुछ करने का सोचते हैं तो हम आगे बढ़ते हैं एक सफल
मनुष्य बनते हैं । हमें यह सोचना चाहिए की हमने जितना काम कल करा था कल
उससे कुछ और ज्यादा करूँगा या फिर आज जो गलती हुई है काम में वो कल नहीं
करूँगा तो कितना अच्छा हो सकता है ना । Actually हमारा दुश्मन कोई और नहीं
हम स्वयं होते हैं ।
ये हो phisolophy की बात हुई पर क्या कभी हमने किसी मंत्री या नेता को ऐसा
बयान देते देखा है जो दूसरों तो रास्ता दिखाए वो भी चुनावी माहौल में ।
जहाँ तक मुझे पता है कोई मंत्री या नेता इस तरह की बातें नहीं करता । इतना
optimistic भारत के तो कोई राजनेता नहीं लगते हैं । सही मायने में कोई
राजनेता जो की अपने विचारों से ही नहीं अपने आचरण से भी ज्ञानवान है तो वो
नरेंद्र मोदी जी हैं।
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