Sunday, July 01, 2018

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धर्म और धर्माचरण

Dharm aur Dharmacharanकल सुबह से मैं सोच रहा हूँ कि क्या हमारे सनातन समाज से धर्म और धर्माचरण समाप्त होता जा रहा है।  जहाँ विज्ञान अपने आप को साबित करा है, हर ओर  हमें वैज्ञानिक चमत्कार दिख रहा है उसके उलट सच्चे धर्माचरण वाले व्यक्तित्व ढूंढने पर भी नहीं मिलते हैं।  विज्ञान हमें हमारे जीवन को सरल बना सकता है, लेकिन धर्म के बिना वैज्ञानिक उपलब्धि हमें विनाश के ओर  ही ले जाएंगे। आज जो हर ओर  नैतिक पतन दिख रहा है उसके पीछे कहीं ना कहीं हमारे धर्म और धर्म के ठेकेदारों की विफलता नहीं तो और क्या है।  अंग्रेजी मीडियम के स्कूलों में क्रिसमस के बारे में तो अच्छी अच्छी बातें बताई जाती है किन्तु हमारे धर्म, सनातन धर्म के बारे में कितने  बच्चे पढ़ते हैं ? जब मैं इन बड़े-बड़े अंग्रेजी पब्लिक स्कूलों के नाम देखता हूँ तो आश्चर्य होता है की उनके नाम विदेशी ईसाई संतो और पादरिओं  के नाम पर रखे होते हैं और वहां पढ़ने वाले बच्चे और पढ़ाने वाले शिक्षक में  से ९९% हिन्दू होते हैं। क्या हमारे समाज और संस्कृति में संतों की कमी है! कितने पब्लिक स्कूलों में हिन्दू देवी देवताओं और संतों के बारे में पढ़ाया जाता है?
हमारे समाज में संतों और धर्मग्रंथो की कमी नहीं है।  कमी है तो सच्चे धर्माचार्यों की और धर्म को अपने जीवन में उतारने वाले मनस्वी लोगों की।  जो लोग अपने आप को धर्म का ठेकेदार मानते हैं, उन्हें समझना होगा की केवल बोलने से अगर धर्म का महत्व प्रचार प्रसार हो जाता तो कब का हो गया होता। अगर हम अपने आचरण से दूसरों को धर्म का उपदेश दें तो उसका प्रभाव ही कारगर होता है।  हमें अपने सदाचरण से दूसरों को धर्म के प्रति जागरूक करना चाहिए।  धर्म की शिक्षा को बचपन से ही देना आवश्यक होता है, अक्सर हम सुनते हैं कि  धर्म का काम तो बुढ़ापे में करना चाहिए पर एक बात हमें सोचनी चाहिए कि जब मृत्यु का कोई समय निश्चित नहीं है तो ये कैसे हो सकता है कि हम बुढ़ापे तक पहुंच सकें इसलिए जब हम  युवा हैं,जब तक हमारे हाथ में ताकत है तभी हमें धर्म कर्म के कार्य शुरू कर देने चाहिए।
आज के वातावरण में जब हर कोई पैसों के पीछे भाग रहा है, किसी के सफल और असफल का पैमाना पैसा हो गया है, धर्माचरण भी फैशन बन गया है।  जिनके पास पैसे हैं वो भंडारे लगा कर, डोनेशन देकर अपने धार्मिक होने का डंका बजाते हैं।  पर जो निर्धन हैं वो अगर धर्म की बातें करे तो लोग उस पर हँसते हैं।  और इस तरह हम समाज के पिछड़े तबके के लोगों को किसी और धर्म जैसे मुस्लिम और ईसाई में जाने का मौका देते हैं।  ऐसा नहीं है की यह नया है, इसी सब के कारण हमने अपने कितने ही सनातन धर्मालम्बी भाईओं को खो दिए और अभी भी खो रहे हैं।  अगर अब भी नहीं सम्हले तो शायद बहुत देर हो जायगी। किसी के सफल और असफल होने का पैमाना उसके सच्चे धर्माचरण और कर्म होना चाहिए ना की उसका धर्म अर्जन।
आज लोगों के नैतिक पतन का कारण  केवल और केवल धर्म के तथाकथित  ठेकेदारों (पंडितों ) के कमी का होना है। जिस तरह पदार्थों  के वैज्ञानिकों ने विज्ञान को साबित किआ है उसी तरह धर्म के पंडितों को धर्म भी अपने आचरण और उदाहरण से सिद्ध करना होगा।  तब जाकर जनमानस के नैतिक पतन को समाप्त करा जा सकता है।  

Sunday, February 18, 2018

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सहनशीलता या कायरता

हम भारतीय इतने सहनशील हो गए हैं कि कोई भी हमारे देश के विरूद्ध  कुछ भी बोल जाता है और हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बोलकर चुप रह जाते हैं।  ये एक कायर समाज की पहचान है और कहीं ना कहीं हमारा समाज भी इसी तरह का होता जा  रहा है।  सहनशीलता की भी एक तय सीमा होनी चाहिए।  अगर कोई हमारे देश के सैनिकों  को  धर्म के आधार पर बांटे या कोई पाकिस्तान परस्त  नेता खुलेआम पाकिस्तान के समर्थन में मीडिया को और आम लोगों को भड़काए  और हमारी सरकार और हम उसका विरोध भी खुलकर ना कर सकें तो समझ लो की हम एक कायर समाज के बीज बो रहे हैं। मुँझे  यह समझ में नहीं आता है कि हमारी सरकार और जो लोग सत्ता में बैठे हैं, वो ऐसे लोगों को,

Sunday, February 04, 2018

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जीवन एक पहेली

 मैंने यह पढ़ा था कि जीवन एक मायाजाल है, "ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या" इत्यादि-इत्यादि। कभी बिश्वास नहीं होता था! लेकिन यह सच है।
इसे इस तरह से समझते हैं की विज्ञान के हिसाब से अँधेरा कभी होता ही नहीं है लेकिन हमारी आखें रात के अँधेरे में देख नहीं सकती, ध्वनि भी हम एक निश्चित हर्ट्ज़ पर ही सुन सकते हैं, २० हर्ट्ज़ से लेकर २०००० हर्ट्ज़ तक।
इस संसार में कभी रात होते ही नहीं हैं। जब हमारे देश में रात हो रही होती है तो अमेरिका में सुबह हो रहे होते हैं।  इसी प्रकार के अनेक उदाहरण हैं जो यह सिद्ध करते हैं की हमारे सनातन धार्मिक ग्रन्थ में लिखे गए बातें केवल कोरी कल्पना नहीं है।

Sunday, January 28, 2018

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देश की दिशा और दशा

इस २६ जनवरी को हम सब ने बहुत ही धूम-धाम से हमारे देश का उनहत्तरवाँ गणतंत्र दिवस मनाया।  प्रातः काल से ही मैं टेलीविज़न सेट के सामने बैठ कर पुरे परेड को अच्छी तरह से देखा।  अच्छा लगा।  लेकिन शाम होते-होते मन व्यथित हो उठा।  पता है क्यों! क्योंकि हमारे ही राज्य के काशगंज जिले में  एक लड़के को केवल इसलिए मार दिया गया क्योंकि कुछ समूदाय को उसका झंडा लहराना पसंद नहीं आया।  और यूं  कहें  की उसने भारतीय तिरंगे को कुछ देश द्रोहियों  के मध्य ले जाने का साहस किया।

Sunday, January 14, 2018

कितने स्मार्ट हैं हम

आज smart phones का समय है।  हर किसी के पास, यहाँ  तक की मेरे ऑफिस के peon जिसकी मासिक वेतन केवल कुछ  रूपये है, वो भी branded company का स्मार्ट फ़ोन रखा है।  ये अच्छी बात है, हमारा देश आगे बढ़ रहा है, और यह सुचना क्रांति का युग है। लेकिन क्या हम भी स्मार्ट हैं, स्मार्ट फ़ोन्स को उपयोग करने में ? कुछ मुट्ठी भर लोगों को छोड़कर बाकीं लोगों का जबाब होगा - नहीं।  
क्या कभी हमने यह सोचा है कि हम इस स्मार्ट फ़ोन का कितना सदुपयोग कर पाते हैं। हममें  से अधिकांश लोग केवल फेसबुक, व्हाट्सप्प और इंस्टाग्राम में ही पूरा समय लगा देते हैं।  या फिर ऑनलाइन गेम्स और थोड़ी सी internet browsing कर लेते हैं।

Sunday, January 07, 2018

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मेरे विचार

 मैं एक सामान्य नागरिक हूँ।  एक साधारण सा जीवन जी रहा हूँ।  पर मेरे विचार  साधारण नहीं हैं, उसमें असाधारन  विलक्षणता है।  आज का युग भी विचारों का है।  अब युद्ध सिर्फ तलवारों से नहीं लड़े जाते हैं, उसके पीछे विचारों का बहुत बड़ा  योगदान रहता है।  उदाहरण के लिए ISIS को ही ले लो....कितना प्रचार प्रसार इस आंतकी संगठन ने सोशल मीडिया के द्वारा करा था और कर रहा भी है। 
सोशल नेटवर्किंग साइट्स अब विचारों  के आदान-प्रदान के सबसे बड़े माध्यम  बन चुके है  और इसी के द्वारा राजनैतिक से लेकर अन्य सभी  संगठन अपने-अपने हितों  को साधने में लगे रहते हैं।  
एक विशेष तरह के प्रोपेगंडा को फैला कर वामपंथी से लेकर समाज विरोधी तत्व  सोशल नेटवर्किंग साइट्स को लगातार एक हथियार की तरह प्रयोग करने लगे हैं।  जहाँ तक सोशल मीडिया का प्रश्न है तो इसकी पहुँच अब भारत के सुदूर गावों  तक हो चूका है।  अब स्मार्ट फ़ोन को खरीदने में ग्रामीण  लोग भी आगे निकल चुके हैं।  ये अच्छा भी है,  ये होना चाहिए।