Sunday, January 07, 2018

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मेरे विचार

 मैं एक सामान्य नागरिक हूँ।  एक साधारण सा जीवन जी रहा हूँ।  पर मेरे विचार  साधारण नहीं हैं, उसमें असाधारन  विलक्षणता है।  आज का युग भी विचारों का है।  अब युद्ध सिर्फ तलवारों से नहीं लड़े जाते हैं, उसके पीछे विचारों का बहुत बड़ा  योगदान रहता है।  उदाहरण के लिए ISIS को ही ले लो....कितना प्रचार प्रसार इस आंतकी संगठन ने सोशल मीडिया के द्वारा करा था और कर रहा भी है। 
सोशल नेटवर्किंग साइट्स अब विचारों  के आदान-प्रदान के सबसे बड़े माध्यम  बन चुके है  और इसी के द्वारा राजनैतिक से लेकर अन्य सभी  संगठन अपने-अपने हितों  को साधने में लगे रहते हैं।  
एक विशेष तरह के प्रोपेगंडा को फैला कर वामपंथी से लेकर समाज विरोधी तत्व  सोशल नेटवर्किंग साइट्स को लगातार एक हथियार की तरह प्रयोग करने लगे हैं।  जहाँ तक सोशल मीडिया का प्रश्न है तो इसकी पहुँच अब भारत के सुदूर गावों  तक हो चूका है।  अब स्मार्ट फ़ोन को खरीदने में ग्रामीण  लोग भी आगे निकल चुके हैं।  ये अच्छा भी है,  ये होना चाहिए।
लेकिन सोशल मीडिया एक दुधारी तलवार की तरह है, यदि आप विवेकवान  हैं तो ये आपके विचारों को सुदृढ़ करने का एक अद्भुत माध्यम  है किन्तु अगर आपकी समझ कम हुई तो यह सम्भावना है की आप किसी और के प्रोपेगंडा का हिस्सा बन जाएँ।  दुःख इस बात का है कि सोशल साइट्स का उपयोग सबसे ज्यादा किशोर युवक युवतियां करते हैं, और किशोरावस्था में  समझ इतनी विकसित होती नहीं है की सही गलत का निर्णय कर सकें।  
फिर भी हम विचारों को तो फैलने से रोक नहीं सकते हैं।  ये अवश्य कर सकते हैं की सही-गलत का सही से निर्णय कर सकें।  लेकिन हमारे विवेक जाग्रत हो तभी हम सही-गलत का निर्णय कर सकते हैं।  और विवेक की शिक्षा हमें धर्म  सिखाता है, जो की हमारे जीवन  से अब लुप्त होता जा रहा है।  पहले गुजरात के चुनाव में हिन्दुओं की एकता को तोड़ने का पूरा प्रयास किया गया।  अब महाराष्ट्र में भी यही काम हो रहा है, और हम सब चुपचाप यह देख रहे हैं।  यह पूरा का पूरा प्रोपेगंडा सोशल साइट्स के द्वारा फैलाया जाता है।  महाराष्ट्र में हुई हिंसा पर तो एक न्यूज़ चैनल ने हैडलाइन में लिखा की " दलित और हिन्दू के बिच हिंसा", मतलब दलित हिन्दू नहीं हैं।  यह सब हो रहा है और हमारे देश में  हो रहा है।  
मेरा तो यह मानना है की आजादी के ७० साल बाद अब दलित उसे मानना चाहिए जो की आर्थिक रूप  से गरीब है, आरक्षण गरीबी के आधार पर मिलना चाहिए, ना की जाती के ऊपर।  जाती तो अब रह ही नहीं गयी है, क्या ब्राह्मण क्या क्षत्रिय, सब अब बदल चुके हैं ब्राह्मण अब शिखा और सूत्र का मतलब भूल चुके हैं।  मैं कहता हूँ अगर एक क्षत्रिय दुकान चला रहा है या नौकरी कर रहा है तो वो क्षत्रिय कहाँ रहा क्यूंकि क्षत्रिय तो तलवार चलाता है।  उसी तरह एक ब्राह्मण फौज में है तो वो ब्राह्मण कैसे हुआ।  
इक्कीशवी सदी में  जाती भेद का कोई मतलब नहीं है, ये तो हमारी सरकारें वोट बैंक बटोरने के लिए हम लोगों में भेद-भाव पैदा करती हैं और उन्हें बनाये  रखने के लिए आरक्षण  का प्रावधान करती हैं। समय अब आ गया  है कि  हम अब इन समाज विरोधी ताकतों को आगे बढ़ने से रोकें।  अपने विवेक का उपयोग करें और अपने आप को जातिवाद  और राज्यवाद के संकीर्णता से ऊपर उठाकर सनातनी मानें।  क्योंकि राष्ट्रविरोधी ताकतें अब अपनी पूरी शक्ति  हिन्दुओं को  आपस में  लड़ाकर  भारत को कमजोर करने में लगा रहा है। विचार  को  विचार से ही काटा जा सकता है, और इसका सबसे बड़ा माध्यम सोशल मीडिया है।  


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