Sunday, February 18, 2018

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सहनशीलता या कायरता

हम भारतीय इतने सहनशील हो गए हैं कि कोई भी हमारे देश के विरूद्ध  कुछ भी बोल जाता है और हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बोलकर चुप रह जाते हैं।  ये एक कायर समाज की पहचान है और कहीं ना कहीं हमारा समाज भी इसी तरह का होता जा  रहा है।  सहनशीलता की भी एक तय सीमा होनी चाहिए।  अगर कोई हमारे देश के सैनिकों  को  धर्म के आधार पर बांटे या कोई पाकिस्तान परस्त  नेता खुलेआम पाकिस्तान के समर्थन में मीडिया को और आम लोगों को भड़काए  और हमारी सरकार और हम उसका विरोध भी खुलकर ना कर सकें तो समझ लो की हम एक कायर समाज के बीज बो रहे हैं। मुँझे  यह समझ में नहीं आता है कि हमारी सरकार और जो लोग सत्ता में बैठे हैं, वो ऐसे लोगों को,
देश के गद्दारों को देशद्रोह के आरोप में सजा क्यों नहीं दे सकते हैं।  अभिव्यक्ति की आजादी की भी एक सीमा होना चाहिए।  एक ओर सरहद पर हमारे जवान शहीद होते रहते हैं और हम बस देखते रहते हैं।  पाकिस्तान जैसा देश के साथ किसी भी तरह का रिश्ता रखना हमारे जवानों की शहादत का अपमान है।  ऐसी कौन सी विवशता है जो भारत की सरकार पाकिस्तान के साथ आर्थिक रिश्ते रखने को विवश है।  सबसे पहले राष्ट्रहित होना चाहिए ना कि वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर का एग्रीमेंट।  पाकिस्तान के साथ सारे रिश्ते समाप्त कर देना चाहिए।
हमारे अपने ही  देश में पाकिस्तान परस्त  अवार्ड वापसी गैंग  की एक अच्छी-खासी संख्या है जो की दीमक की तरह हमारे देश को वैचारिक रूप से खोखला कर रहे हैं।  ये सब ऐसे देशद्रोही हैं जो खाते भारत का हैं और भक्ति पाकिस्तान का।  ऐसे सभी देश के गद्दारों को या तो पाकिस्तान भेज देना चाहिए या फिर जेल में।  दुश्मन देश से ज्यादा खतरनाक ये देशद्रोही हैं।  इन्हे पहचानना इतना कठिन भी नहीं है, बस कहीं भी कोई वोट बैंक या कोई दलित को कोई मार दे या वो आत्महत्या ही कर ले बस ये देश द्रोही गिद्ध की तरह वहां आ बैठेगा।  कश्मीर में यदि कोई जवान को कोई आतंकवादी घायल कर दे तो कोई बात नहीं करेगा पर जैसे ही कोई पत्थरबाज को जरा सी चोट भी लग जाए तो ये पाकिस्तान परस्त  देश के गद्दार सक्रिय हो जायेंगे अवार्डवापसी गैंग उस पत्थरबाज के मानवाधिकार का रोना रोयेंगे।  बस यही पहचान है। मैं पूछना चाहता हूँ कि  क्या उस घायल सैनिक का मानवधिकार नहीं हैं।  
विरोधाभास यह है कि हम अपने ही टैक्स का पैसा इनके सुरक्षा पर खर्च करते हैं।  जिस भारतीय सेना को ये पानी पी -पी कर कोसते रहते हैं, वही सेना इनके सुरक्षा करते हैं।  और हम बस देखते रहते हैं।  ये कैसी सहनशीलता है।  नहीं चाहिए ऐसी सहनशीलता जो हमें कायर बना रही है।  राष्ट्रधर्म सर्वोपरि ! अपने देश की सुरक्षा हमें केवल बाहरी दुश्मनों से ही नहीं करनी चाहिए बल्कि हमारे देश के भीतर जो राष्ट्र विरोधी ताकतें  हैं उनसे भी निपटना होगा।  ये वो ताकतें है जो हमारे देश को अंदर ही अंदर खोखले किये जा रहे हैं।  ये काम हमें ही करना होगा।  हमारी सरकार को करना होता तो अब तक कर चुकी होती।  अब आर-पार की लड़ाई होनी चाहिए।  जो घाव आजादी के समय हुआ था वो अब नासूर बन चूका है।  अब इसका इलाज कड़ी निंदा करके नहीं हो सकती है अब इसका इलाज होना चाहिए।

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